Wednesday 30 November 2011

"सब से बड़ा रोग.... क्या कहेंगे लोग...."

सोच रहा हूँ क्या लिखू....?? सोचते हुए एक घंटे से ज्यादा हो चूका है पर अब तक इस बात का फैसला नहीं हो पाया है के लिखना किस विषय पर है... अब जब पूरा एक घंटा निकल ही गया है या बर्बाद हो ही गया है तो कुछ न कुछ तो लिखना ही पड़ेगा वर्ना आज रात भर नींद नहीं आएगी और फिर खुद की शकल भी तो देखनी है आईने में.....  तो फिर अचानक एक मेसेज आया मोबाइल पे.... और मुझे लगा के बॉस मिल गया अपना आज का सब्जेक्ट. उस मेसेज का मोरल था "सब से बड़ा रोग.... क्या कहेंगे लोग...." मुझे लगा की वाह क्या सब्जेक्ट मिला है लिखने के लिए... औए वाकई... ये सब्जेक्ट अच्छा भी है लिखने के लिए... सबसे बड़ा रोग... क्या कहेंगे लोग.... हम अपनी ज़िन्दगी में हर काम वही करते हैं जिससे हमे लोगो की तारीफ़ मिले... लोग हमारे काम को पसंद करें... अपनी पसंद और नापसंद तो बाद में तय करते हैं... पहले लोगों के बारे में सोचते हैं... . हमारा हर काम सिर्फ इसी बात पे निर्भर करता है की  लोग क्या कहेंगे.... आखिर क्यों हमें लोगों की इतनी परवाह होती है हमेशा... के हम खुद को दुःख में रखकर भी वही काम करते हैं जो दुसरो को खुश रख सकें.... और सच तो ये है के हम चाहे जो भी काम करें....   वो अच्छा हो या बुरा... अपनी ख़ुशी से... या दूसरों की ख़ुशी के लिए..... लोगों के पास हमेशा कुछ न कुछ होता ही है हमारे खिलाफ कहने को.... तो आखिर क्यों हम दुसरों की इतनी परवाह करते हैं.... क्यों हमारा हर काम सिर्फ और सिर्फ उनकी संतुष्टि के लिए होता है जिनके पास हमेशा हमारे खिलाफ हमेशा कुछ न कुछ होता ही है कहने को.... मुझे हमेशा से राजेश खन्ना की फिल्म अमर प्रेम का वो गाना याद आता है " कुछ तो लोग कहेंगे... लोगों का काम है कहना.." सच है.... ये हमेशा से होता आया है... बड़ी बात तो ये है के हमें ये सब पता होने के बाद भी हम सारे काम दुसरों के हिसाब से ही करते हैं.... पता नहीं ये ठीक है या नहीं... सही है या गलत... अच्छा है या बुरा.... पर जो भी है.... होता ऐसा ही है... हमारी ज़िन्दगी के एडी से छोटी तक के सारे काम दुसरों के हिसाब से ही किये जाते हैं... ऐसा क्या है इस दुनिया में .... हर बन्दा अपनी ख़ुशी के अलावा दुनिया की ख़ुशी पहले सोचता है.... काश के ऐसा होता.... अगर ऐसा होता तो दुनिया जिस रस्ते पर चल रही है ठीक उसकी विपरीत दिशा में जाती होती.... मगर ऐसा कुछ भी नहीं है हकीकत में.... सच तो ये है के हर इंसान के अन्दर एक अलग तरह का डर बैठा हुआ है के अगर मैंने ये काम किया तो दुनिया वाले क्या कहेंगे.... इंसान को दुनिया वालो की ख़ुशी की परवाह भले ही न हो... लेकिन दुनिया वालो की गालियों की परवाह ज़रूर है.... उससे हर बात पे इस बात का डर होता है की दुनिया वाले क्या कहेंगे....  मैं पूछना चाहता हूँ हर उस इंसान से जो दुनिया वालो की बातों से डरता है की "क्या दुनिया वालो को और कोई काम नहीं है सिवाय इसके के वो तुमसे आ के सवाल जवाब करें...???? " इस बात का जवाब है हां भी.... और नहीं भी.... क्युकि दुनिया के आधे लोगो में इतना साहस नहीं की वो आ कर तुमसे सवाल करे..... और बचे आधे लोग जो सवाल करते हैं.... हम में इतना साहस होना चाहिए के हम उनके सारे सवालो का ताबड़तोड़ जवाब दे सकें.... वैसे भी पीठ पीछे तो हर कोई बुराई करता है.... सामने से बोलने वाले कम ही मिलते हैं.... शर्मा जी ने सिर्फ इसलिए ह्युंदै की "वर्ना" खरीद ली क्योंकि वर्मा जी के पास भी वही गाडी है... और वो इसको ही सबसे अच्छी गाडी मानते हैं... रमा ने किटी पार्टी जाना सिर्फ इसलिए शुरू कर दिया क्योंकि सोसाइटी की बाकी महिलाये उनसे सौतेला व्यवहार करती थी... किटी पार्टी शुरू हुई... तो जुआ खेलना भी शुरू हो गया और ड्रिंक्स होना तो लाज़मी ही था.... प्रीति को शादी की शौपिंग बॉम्बे से करनी थी.... वर्ना सहेलियां क्या कहती.... इस तरह के ढेरो उदहारण हम रोज़ अपने आस पास में देख सकते हैं.... और हमे आस पास देखने की भी क्या ज़रूरत है.... हम खुद अपने आप को ही देख ले.... के हम क्या क्या करते हैं.. और क्यों और किसके लिए करते हैं.... जवाब अपने आप मिल जाएगा.... कारण सिर्फ एक ही है इसका... के हम डरपोक हैं... हम कमज़ोर हैं.... जो दुनिया से डरते हैं.... जो दुनिया के बनाये हुए इन रीति रिवाजों के हिसाब से चलते हैं..... हम में इतना साहस नहीं है के हम अपने किये गए हर काम को एक दृढ मत से सही साबित कर सकें... यही कारण है के हम हमेशा से वही करते आये हैं... जो दुसरों को संतुष्टि देता है.... और हम कमजोरों की तरह दूसरों की संतुष्टि में ही खुद की संतुष्टि समझने लगते हैं... इसके अलावा और कर भी क्या सकते हैं....
हमें अपना हर काम अपनी संतुष्टि के लिए ही करना चाहिए... दुनिया जो सोचे वो सोचे.... हम में इतनी शक्ति होना चाहिए के हम खुद को सही साबित कर दुनिया को अपने पदचिन्हों पर चलने को मजबूर कर दें.... मुझे पूरा विश्वास है के एक न एक दिन ज़रूर ऐसा आएगा जब हम सब सिर्फ अपनी संतुष्टि के लिए ही सारे काम करेंगे....

आपका
बादशाह खान