Tuesday 17 January 2012

लोगो का इंटरटेनमेंट

ये रात भी एक आम रात थी.... ठण्ड भी रोज़ की तरह तेज थी...  पुलगांव के पास गोलू की चाय की टपरी पे लोगो का आना जाना लगा हुआ था... जैसे जैसे रात बढती जा रही थी... ठण्ड भी बढती जा रही थी... रोज़ की तरह लोग आ रहे थे अपने दिन भर की थकान मिटाने... बस वो रुकते... चाय पीते... थोड़ी देर बाते करते और चले जाते....  अचानक दुर्ग शहर की ओर आने वाली गाड़ियाँ बंद हो गई... और दुर्ग से राजनंदगांव की ओर जाने वाली गाड़ियाँ बढ़ने लगी... फिर नांदगांव की ओर से एक सायकल वाले से पूछने पर पता चला की पुल पे कोई एक्सीडेंट हो गया है... गोलू की दुकान पर सारा का सारा माजरा ही बदल गया... लोग भाग कर नदी की ओर जाने लगे... वहाँ जाने पर पता चला के तेजी से आ रही एक स्कोर्पियो गाडी शिवनाथ नदी के पुल से टकराती हुई नदी में गिर गई है..... जिज्ञासावश मैं भी वहाँ गया... और देखा... के स्कोर्पियो में एक ही बन्दा था जिसकी डूबने से मौत हो गई है... पुलिस लाश की पहचान नहीं कर पाई, असल में कोई भी उस लाश की पहचान नहीं कर पाया.. और मैं वहाँ से निकल गया... मुझे लगा कि मेरी वहाँ पर कोई ज़रुरत नहीं है... बस बगल के गुरूद्वारे में हाथ जोड़े और मरने वाले कि आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और वहाँ से वापस गोलू की दुकान पर चला गया... धीरे धीरे गोलू की दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी... और सब उसी एक्सीडेंट के बारे में बातें करने लगे.... लोग अब नदी की तरफ जाने लगे उस एक्सीडेंट को देखने के लिए... मेरे एक दोस्त का फोन आया की नदी के पास एक एक्सीडेंट हो गया है... देखने चलें क्या.... गोलू की चांदी हो रही थी... लगातार चाय पे चाय के आर्डर जो आ रहे थे... गोलू भी लोगो को बड़े मज़े से उस एक्सीडेंट के बारे में बता रहा था... मानो वो कोई एक्सीडेंट नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा का एक्शंन सीन बता रहा हो... थोड़ी देर के बाद पता चला के कोई लड़का था... जो अकेला स्कोर्पियो में आ रहा था और पुल में गाडी सम्हाल नहीं पाया और गाड़ी नदी में गिर गई, थोड़ी ही देर में लड़का मर गया... लोगो की भीड़ लगातार बढती ही जा रही थी... मैं इस बात पे हैरान था... के जब लड़के की पहचान ही नहीं हुई है तो फिर इतने लोग उसे देखने कैसे आने लगे... दरअसल ये लोग उस लड़के को देखने नहीं... बल्कि उसकी मौत का मज़ा लेने आ रहे थे... हर शख्स उसकी मौत का मज़ा लेने ही आ रहा था वहाँ पर... उस लड़के की मौत लोगो के लिए इंटरटेनमेंट बन गयी... मुझे लगता है के ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा था क्योंकि ये रात का वक़्त था... दिन का वक़्त होता तो शायद कोई पलट के भी नहीं देखता उस पुल की तरफ... हम अपने आप को ही देख लें... रोज़ सड़क पर कितने एक्सीडेंट होते हैं... लेकिन कोई देखता तक नहीं की किसका एक्सीडेंट हुआ है..., कहीं चोट ज्यादा तो नहीं लगी है.. या कोई  मर तो नहीं गया है... बस चलती गाडी में ही बगल वाली गाड़ी वाले से पूछ लेते हैं... मर गया क्या...??? मगर यहाँ तो माजरा ही अलग था.... उस लड़के की मौत लोगो के लिए  इंटरटेनमेंट  बन गयी... मतलब हम अब ऐसे हो चुके हैं के हमारे पास वक़्त हो... तो हम किसी की मौत का भी मज़ा ले सकते हैं और अपना मनोरंजन कर सकते हैं.... ये क्या हो गए हैं हम लोग... इंसान थे पर अब पता ही नहीं चलता के हम इंसान हैं भी या नहीं... दया, करूणा, मदद, इंसानियत जैसी बाते अब हमें फिल्मी या किताबी बातें लगने लगी है.... हम फेसबुक पर एक्सीडेंट सम्बन्धी जानकारी को लोगो तक पहुंचा सकते हैं ... पर एक्सीडेंट सपाट पर होते हुए भी वहाँ घायल की मदद नहीं कर सकते ... क्या यही सीखा था हमने बचपन में...?? क्या यही शिक्षा मिली थी हमें अपने बड़ों से....??? ये तो नहीं सीखा था हमने... इस बारे में गंभीरता से सोचने की ज़रुरत है... और सोचने के साथ ये संकल्प लेने की भी ज़रुरत है... के जिसे भी मदद की ज़रुरत हो हम उसकी मदद ज़रूर करेंगे...

बादशाह खान