Friday 6 September 2013

रोज़ की एक चपाती....

एक औरत रोज़ की तरह अपनी रसोई में काम कर रही थी... रोज़ वो दिन में खाना बनाते वक़्त एक चपाती अलग से बना लेती थी.. और घर के दरवाज़े के बाहर रख दिया करती थी.. के जिसको भी ज़रूरत हो वो इस चपाती से अपनी भूख मिटा ले...

उस औरत ने देखा.. के एक बुढा कुबड़ा सा आदमी रोज़ उस दरवाज़े पे रखी चपाती उठा कर ले जाता था... और बजाए शुक्रगुजार होने के.. वो कुछ बडबडाता हुआ वह से चला जाता था... के " बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा.. और अच्छा करोगे.. तो पलट के तुम्हारे पास ही आएगा..."

दिन गुज़रते गए.. और वो बुढा कुबड़ा रोज़ चपाती ले जाता गया.. और रोज़ ये बात कहता रहा.. के " बुरा करोगे वो तुम्हारे पास रह जाएगा.. और अच्छा करोगे.. तो पलट के तुम्हारे पास आएगा.. " वो औरत चिडचिडाने लगी.. के एक शब्द भी कृतज्ञता के नहीं है इस बुड्ढे के पास.. उसने खुद से कहा.. "रोज़ ये कुबड़ा बुड्ढा आता है और कुछ बडबडा के चला जाता है.. क्या मतलब है इसका...??"

और एक दिन उसने बहुत ज्यादा परेशान होकर खुद से कहा.. "बस अब बहुत हुआ.. अब और नहीं झेला जाता.. मुझे इस बुड्ढे को और नहीं सुनना ..."

अगले ही दिन उस औरत ने उस अलग से बनाई हुई चपाती में ज़हर लगा के दरवाज़े पर रख दिया... अचानक उसके मन में ये बात आई... के "ये मैं क्या कर रही हूँ...?? ये मैं कैसे कर सकती हूँ...??" उसने तुरंत जा कर उस चपाती को वह से उठाया.. और कोयले की भट्टी में डाल के जला दिया... और थोड़ी ही देर में दूसरी चपाती बनाकर दरवाज़े पे रख आई... रोज़ की तरह वो बुढा कुबड़ा आदमी आया.. चपाती उठाई.. और फिर बडबडाते हुए वह से चला गया.. के " बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा..."

रोज़ जब वो औरत वो चपाती दरवाज़े पे रखती थी.. तो अपने बेटे के लिए एक दुआ मांगती थी.. जो उससे बहुत दूर अपनी किस्मत आजमाने कहीं चला गया था.. और इस औरत को काफी समय से उसकी कोई खबर नहीं थी.. के वो कहाँ है.. कैसा है... मगर वो रोज़ अपने बेटे के लिए दुआ मांगती थी.. के उसका बेटा सही सलामत हो.. और अच्छी तरक्की करे...

शाम को उस औरत के दरवाज़े में किसी ने दस्तक दी.. दरवाज़ा खोलते ही वो चौंक गई.. उसका बेटा उसके सामने खड़ा हुआ था.. उसका बेटा बहुत दुबला हो चूका था.. फटे हुए कपडे थे.. मैला सा शारीर था.. भूखा था.. और देखने से ऐसा लग रहा था के उसने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है...

कुछ देर बाद उसने अपनी माँ से बात करते हुए बताया.. के "माँ.. ये चमत्कार है के मैं अभी यहाँ हूँ.. जब मैं घर से थोड़ी ही दूरी पे था.. मैं इतना भूखा था.. के मैं भूख से बेहोश होकर गिर पडा.. मैं वहां पडा हुआ मर जाता माँ .. तभी एक बुढा.. कुबड़ा सा आदमी वहां से गुजर रहा था.. मैंने उससे थोड़े से खाने की भीख मांगी.. और वो इतना दयालु था माँ.. के उसने एक पूरी चपाती मुझे दे दी... और उसने कहा.. 'मेरे पास बस यही है.. यही है जिससे मैं अपने पूरे दिन की भूख मिटाता हूँ.. मग आज.. तुम्हे इस चपाती की ज्यादा ज़रूरत है..' और उस बूढ़े ने एक बात कही.. के 'बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा..' और वो बुढा ये बात बोल के वहां से चला गया माँ..."

जैसे ही उस औरत ने ये बात सुनी.. उसका चेहरा पीला पड़ गया... उसने दीवार का सहारा लेते हुए खुद को सम्हाला.. और उसने ये बात याद की.. के अगर आज वो ज़हर वाली चपाती वो आग में नहीं जलाती.. तो वो रोटी आज उसके अपने बेटे ने खाई होती.. और वो जिंदा नहीं रहता...

तब जा कर उस औरत को उस बूढ़े की कही हुई बात समझ में आई.. के "बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा.."

और सच भी है... अच्छा किया हुआ आज नहीं तो कल... फल ज़रूर देता है.. और बुरा किया हुआ साथ ही रह जाता है.. और वो बुराई साथ नहीं छोडती... इंसान को समझ में नहीं आता अच्छे और बुरे में फर्क.. क्योंकि इंसान गुरूर में रहता है.. और इस बात के घमंड में रहता है के वो जो कर रहा है.. अच्छा कर रहा है... इस अच्छाई और बुराई.. दोनों का सबब उसे ज़रूर मिलता है.. देर से ही सही.. मगर इन्साफ ज़रूर मिलता है... इसलिए इंसान को अच्छा करना चाहिए.. और अच्छा करते ही रहना चाहिए... चाहे इसका फल आज मिले या कल.. फल की इच्छा किये बिना अच्छाई करते रहना चाहिए... क्योंकि.. अच्छा किया हुआ.. पलट के ज़रूर आता है...


आपका

बादशाह खान