Thursday 11 April 2013

सुख और दुःख


अभी अभी किसी फिल्म में ये डायलोग सुना था... “ पता है लड़के इतनी गालियाँ क्यों बकते हैं...??? क्योंकि वो रोते नहीं हैं...” मुझे कुछ हद तक ये डायलोग सही भी लगा... पर मैं इस डायलोग से पूरी तरह से सहमत नहीं था... लड़के भी रोते हैं.. बहुत रोते हैं.. कुछ ऐसे होते हैं जो रोते भी हैं और गालियाँ भी बकते हैं.. इसकी वजह ये हो सकती है के वो शायद कम रोते हैं... और जो बिलकुल नहीं रोते.. वो बहुत ज्यादा गालियाँ बकते हैं...

बहरहाल... कोई गालियाँ बके... या कोई रोये.. ये परिणाम है अपने अन्दर की भावनाओ को व्यक्त करने का... हर इंसान का अपनी भावना को व्यक्त करने का एक तरीका होता है... कोई चुप रह कर भी अपनी भावनाएं व्यक्त करता है... समझने वाले उसे समझ जाते हैं.. कोई गालियाँ बकता है.. कोई रोता है.. और हर किसी का अपना अपना तरीका होता है.. इन सब का मूल कारण है अपने अन्दर की भावना... इंसान के अन्दर जैसी भावना रहेगी.. उसके परिणाम अलग अलग तरीकों से उसके आचरण में नज़र आएँगे...

गालियाँ बकना या रोना... या चुप रहना.. इन सभी बातो की वजह है दुःख.. या गुस्सा... इंसान इतना दुःख या गुस्सा क्यों करता है...?? बस इसलिए क्योंकि उसके मन का नही हुआ.. या उसके मुताबिक काम नहीं हुआ..?? हमारे ज़्यादातर या कहा जाए के सारे दुखों और गुस्से की वजह दुसरे ही होते हैं.. हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो खुद पे खुद की गलतियों या गलत कामों की वजह से गुस्सा या दुःख करे... हम सिर्फ और सिर्फ दूसरों की वजह से ही दुखी होते हैं.. या गुस्सा करते हैं... दूसरों के द्वारा किये गए काम... या दूसरों का आचरण हमारी मन:स्थिति का कारण होता है... ऐसा क्यों होता है के उनके किये गए व्यव्हार की वजह से हम दुखी होते हैं...??? इसकी वजह ये है के हम दूसरों से उम्मीदें रखते हैं... उम्मीदें इसलिए रहती हैं क्योंकि आपने किसी के साथ जैसा व्यव्हार किया.. ठीक वैसे ही व्यव्हार की उम्मीद आप सामनेवाले से रखते हैं.. ठीक वैसा नहीं तो कम से कम ऐसे व्यव्हार की उम्मीद रखते हैं के आपको बुरा न लगे... मगर सामने वाले से आपको वैसा कुछ नही मिलता.. और इंसान को दुःख होता है या गुस्सा आता है.. और इसके परिणामस्वरूप वो इंसान अपनी भावना व्यक्त करता है... या तो वो गालियाँ बकता है.. या रोता है... या चुप रहता है..  

इसके ठीक विपरीत.... हमारे सारे हर्ष और ख़ुशी की वजह हम खुद होते हैं.. या हमारे द्वारा किये गए काम होते हैं... हम हर उस कम को कर के खुश होते हैं जो हमने खुद किया है... खुद के किये हुए कामों से हमें ख़ुशी मिलती है... अपनी ख़ुशी की वजह हम खुद हैं.. और अपने दुःख की वजह दुसरे...

तो आखिर हम क्यों दूसरों से उम्मीद करते हैं..?? क्यों उन लोगों के बारे में सोचते हैं जिनसे हमें सिर्फ दुःख मिलता है...?? क्यों उन लोगों के बारे में सोचते हैं जिनको इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता के हमें उनके किसी काम की वजह से दुःख होगा या ख़ुशी...?? ये सवाल हमें अपने आप से करना चाहिए...

हमें सिर्फ अपने बारे में ही सोचना चाहिए.. ना की दूसरों के बारे में सोच के दुखी और गुस्सा होना चाहिए.. क्योंकि न तो आप दूसरों के बारे में सोचेंगे.. न आप उनसे कोई उम्मीद रखेंगे.. और न आपको दुःख होगा या गुस्सा आएगा.. तो अच्छा यही है के इंसान सिर्फ और सिर्फ खुद की सोचे.. खुद का फायदा देखे.. न की दूसरों के चक्कर में दुखी और क्रोधित हों ....

आपका
बादशाह खान