Monday, 14 July 2014

हेलमेट अनिवार्यता – सुरक्षा या वसूली...

कल सुबह सुबह दुकान के लिए घर से निकलते ही थोड़ी दूर जाने के बाद पुलिस ने मुझे पकड़ लिया... और कहा..  चालान बना इसका... मैंने पुलिस वाले से ये पूछा.. के सर.. चालान किस बात का... उसने गुस्से में जवाब दिया... “शर्म नहीं आती.. पूछ रहे हो चालान किस बात का...” तो मैंने थोडा शरमा के पूछा.. के सर.. चालान किस बात का... उसने चुटकी लेते हुए अपने सहकर्मी से कहा... “यादव.. ये ज्यादा होशियार बन रहा है... बना साले का 500 रु. का चालान...” उसने गुस्से में फिर जवाब दिया.. हेलमेट कम्पलसरी हो गया है.. और तूने हेलमेट नहीं लगाया है... तो 500 रु. का चालान बनेगा... अब मैंने सोचा.. के पैसे तो इसको देने ही हैं... क्यू न इससे ऐसे सवाल किये जाएं.. जो इसको झकझोर दें.. और शायद ये मुझसे पैसे न ले... मैंने कहा... सर.. शराब पीकर गाडी चलाना भी तो अपराध है.. और रोज़ रात में इतने लोग शराब पीकर गाडी चलाते हैं... तो आप उन लोगों का चालान क्यू नहीं बनाते रोज़... तो उसने कहा “हमको हमारा काम मत सीखा बे हीरो... हमें सब पता है के कब क्या करना है...” मुझे लगा.. के काफी नहीं है.. फिर मैंने पुलिस वाले से पूछा के सर... हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी तो हमारी खुद की होती है ना... तो फिर अगर किसी दुर्घटना में हम ज़ख़्मी हो जाते हैं.. या फिर हमारी जान चली जाती है... तो भी इसकी ज़िम्मेदारी हमारी ही होगी... फिर चाहे हमने हेलमेट लगाया हो या नहीं... क्या फर्क पड़ता है.. पुलिस वाला अब मुझसे परेशान हो रहा था.. और उसने जोर से बोला... “सुन बे.. तू ज्यादा बात मत कर.. जितना तू बोलेगा.. उतना तेरा चालान बढ़ता जाएगा...” मैंने फिर पुलिसवाले से पूछा.. के सर... अगर हेलमेट लगाने के बाद भी मेरी जान चली गई... तो क्या सरकार मेरे परिवार को मेरी मौत का हर्जाना देगी...??? इस सवाल के बाद पुलिस वाला थोडा स्तब्ध रह गया.. और उसने कोई जवाब नहीं दिया... उसके सहकर्मी ने मुझे किनारे में ले जा कर कहा.. के ला 100 रु. दे... और जा चुपचाप.. कल से हेलमेट पहन के घर से निकलना... ठीक है...??? मैंने कहा यादव जी.. अभी घर से निकला हूँ कुछ कमाने के लिए... दुकान पहुंचा भी नही हूँ.. सुबह से 1 रुपया भी कमाया नहीं हूँ... अभी तो नहीं दे पाउँगा पैसे... उसने अपने साहब से कुछ खुसुर फुसुर की.. और मुझसे कहा... “ जा यार तू... मगर कल से हेलमेट पहन के ही घर से निकलना... नहीं तो कल कुछ नहीं सुनूंगा मैं...” मैंने कहा ठीक है सर... मगर आप भी ज़रा सोचें.. जो मैंने आपसे कहा था...
पूरे रास्ते में मैं यही सोचते हुए गया के... क्या सरकार सच में बस ऐसे ही वसूली के लिए ये हेलमेट अनिवार्यता वाले कानून लागू करती है... क्या सच में सरकार जनता की भलाई के लिए ये काम करती है या सिर्फ वसूली करने का एक बहाना है ये.... क्योंकि... अगर ये सच में जनता की भलाई के लिए है... तो हेलमेट नहीं लगाने पर कोई जुर्माना नहीं होना चाहिए... और अगर जुर्माना ले रही है सरकार.. तो ये प्रावधान भी होना चाहिए के अगर हेलमेट लगाने के बाद भी दुर्घटना में किसी को चोट आती है.. या किसी की जान चली जाती है.. तो सरकार इसका पूरा हर्जाना भरे... क्योंकि सरकार के हिसाब से तो मरने वाले ने पूरे नियमों का पालन किया था... और पूरे नियमों का पालन करने के बाद भी उसकी जान चली गई... और अगर सरकार ये हर्जाना नहीं दे सकती... तो सरकार को कोई हक नहीं है बिना हेलमेट वालों पर चालान बनाने का...
हेलमेट पहनना अच्छी बात है... अच्छा काम है... मगर हेलमेट नहीं पहनना कोई बुरा काम नहीं है... सरकार इसे अपराध की श्रेणी में ला चुकी है... मतलब.. मेरे अच्छे के लिए सरकार इतना सोचती है.. के अगर मैं अच्छा काम नहीं करूँ.. तो उसके लिए मुझे अर्थदंड भोगना पड़ेगा... माफ़ करना मालिक.. मगर इतना रामराज नहीं है भारत में.. के सरकार जनता की इतनी सोचे... ये बस तरीका है अपनी आय बढाने का...
दूसरी तरफ... रात में 8 बजे के बाद... जितने भी लोग गाडी चलते हैं... उसमे से 25% लोग शराब पीकर गाडी चलते हैं... मैं एहतियात के साथ कह रहा हूँ.. वरना ये % ज्यादा भी हो सकता है... और अगर वो हेलमेट पहनें हों.. तो उनके लिए कोई नियम कानून नहीं है... मैंने अपने शहर में आज तक ऐसी चेकिंग नहीं देखी जिसमें शराब की जांच की जा रही हो...
मतलब अगर मैं अच्छा कम नहीं करूँ... (हेलमेट लगाना) तो मुझे अर्थदंड भोगना पड़ेगा.. लेकिन अगर मैं गलत कम करूँ (शराब पीकर गाडी चलाना) तो कोई देखने और जांच करने वाला ही नहीं है...
क्या सरकार तैयार है इस बात के लिए.. के अगर हेलमेट पहनने के बाद भी किसी दुर्घटना में किसी को चोट आती है तो उसका हर्जाना सरकार देगी...???
या तो हर्जाना देने के लिए तैयार रहे सरकार... या फिर ये हेलमेट के नाम पे अवैध वसूली बंद करे...
अगर मैं कहीं गलत हूँ... तो मुझे सही करें...

आपका

बादशाह खान

Friday, 6 September 2013

रोज़ की एक चपाती....

एक औरत रोज़ की तरह अपनी रसोई में काम कर रही थी... रोज़ वो दिन में खाना बनाते वक़्त एक चपाती अलग से बना लेती थी.. और घर के दरवाज़े के बाहर रख दिया करती थी.. के जिसको भी ज़रूरत हो वो इस चपाती से अपनी भूख मिटा ले...

उस औरत ने देखा.. के एक बुढा कुबड़ा सा आदमी रोज़ उस दरवाज़े पे रखी चपाती उठा कर ले जाता था... और बजाए शुक्रगुजार होने के.. वो कुछ बडबडाता हुआ वह से चला जाता था... के " बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा.. और अच्छा करोगे.. तो पलट के तुम्हारे पास ही आएगा..."

दिन गुज़रते गए.. और वो बुढा कुबड़ा रोज़ चपाती ले जाता गया.. और रोज़ ये बात कहता रहा.. के " बुरा करोगे वो तुम्हारे पास रह जाएगा.. और अच्छा करोगे.. तो पलट के तुम्हारे पास आएगा.. " वो औरत चिडचिडाने लगी.. के एक शब्द भी कृतज्ञता के नहीं है इस बुड्ढे के पास.. उसने खुद से कहा.. "रोज़ ये कुबड़ा बुड्ढा आता है और कुछ बडबडा के चला जाता है.. क्या मतलब है इसका...??"

और एक दिन उसने बहुत ज्यादा परेशान होकर खुद से कहा.. "बस अब बहुत हुआ.. अब और नहीं झेला जाता.. मुझे इस बुड्ढे को और नहीं सुनना ..."

अगले ही दिन उस औरत ने उस अलग से बनाई हुई चपाती में ज़हर लगा के दरवाज़े पर रख दिया... अचानक उसके मन में ये बात आई... के "ये मैं क्या कर रही हूँ...?? ये मैं कैसे कर सकती हूँ...??" उसने तुरंत जा कर उस चपाती को वह से उठाया.. और कोयले की भट्टी में डाल के जला दिया... और थोड़ी ही देर में दूसरी चपाती बनाकर दरवाज़े पे रख आई... रोज़ की तरह वो बुढा कुबड़ा आदमी आया.. चपाती उठाई.. और फिर बडबडाते हुए वह से चला गया.. के " बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा..."

रोज़ जब वो औरत वो चपाती दरवाज़े पे रखती थी.. तो अपने बेटे के लिए एक दुआ मांगती थी.. जो उससे बहुत दूर अपनी किस्मत आजमाने कहीं चला गया था.. और इस औरत को काफी समय से उसकी कोई खबर नहीं थी.. के वो कहाँ है.. कैसा है... मगर वो रोज़ अपने बेटे के लिए दुआ मांगती थी.. के उसका बेटा सही सलामत हो.. और अच्छी तरक्की करे...

शाम को उस औरत के दरवाज़े में किसी ने दस्तक दी.. दरवाज़ा खोलते ही वो चौंक गई.. उसका बेटा उसके सामने खड़ा हुआ था.. उसका बेटा बहुत दुबला हो चूका था.. फटे हुए कपडे थे.. मैला सा शारीर था.. भूखा था.. और देखने से ऐसा लग रहा था के उसने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है...

कुछ देर बाद उसने अपनी माँ से बात करते हुए बताया.. के "माँ.. ये चमत्कार है के मैं अभी यहाँ हूँ.. जब मैं घर से थोड़ी ही दूरी पे था.. मैं इतना भूखा था.. के मैं भूख से बेहोश होकर गिर पडा.. मैं वहां पडा हुआ मर जाता माँ .. तभी एक बुढा.. कुबड़ा सा आदमी वहां से गुजर रहा था.. मैंने उससे थोड़े से खाने की भीख मांगी.. और वो इतना दयालु था माँ.. के उसने एक पूरी चपाती मुझे दे दी... और उसने कहा.. 'मेरे पास बस यही है.. यही है जिससे मैं अपने पूरे दिन की भूख मिटाता हूँ.. मग आज.. तुम्हे इस चपाती की ज्यादा ज़रूरत है..' और उस बूढ़े ने एक बात कही.. के 'बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा..' और वो बुढा ये बात बोल के वहां से चला गया माँ..."

जैसे ही उस औरत ने ये बात सुनी.. उसका चेहरा पीला पड़ गया... उसने दीवार का सहारा लेते हुए खुद को सम्हाला.. और उसने ये बात याद की.. के अगर आज वो ज़हर वाली चपाती वो आग में नहीं जलाती.. तो वो रोटी आज उसके अपने बेटे ने खाई होती.. और वो जिंदा नहीं रहता...

तब जा कर उस औरत को उस बूढ़े की कही हुई बात समझ में आई.. के "बुरा करोगे तो वो तुम्हारे पास रह जाएगा... और अच्छा करोगे.. तो वो पलट के तुम्हारे पास आएगा.."

और सच भी है... अच्छा किया हुआ आज नहीं तो कल... फल ज़रूर देता है.. और बुरा किया हुआ साथ ही रह जाता है.. और वो बुराई साथ नहीं छोडती... इंसान को समझ में नहीं आता अच्छे और बुरे में फर्क.. क्योंकि इंसान गुरूर में रहता है.. और इस बात के घमंड में रहता है के वो जो कर रहा है.. अच्छा कर रहा है... इस अच्छाई और बुराई.. दोनों का सबब उसे ज़रूर मिलता है.. देर से ही सही.. मगर इन्साफ ज़रूर मिलता है... इसलिए इंसान को अच्छा करना चाहिए.. और अच्छा करते ही रहना चाहिए... चाहे इसका फल आज मिले या कल.. फल की इच्छा किये बिना अच्छाई करते रहना चाहिए... क्योंकि.. अच्छा किया हुआ.. पलट के ज़रूर आता है...


आपका

बादशाह खान

Friday, 10 May 2013

फिल्मो का जनरेशन रेप...


फिल्मो का जनरेशन रेप... बस यही शब्द आता है दिमाग में जब भी किसी नए फ़िल्मी आइटम सांग को देखता हूँ तो... जनरेशन रेप... वैसे भी आजकल रेप बहुत ज्यादा प्रचलन में है.. तो फिल्मो में तो ये जनरेशन रेप होना लाज़मी है... आप लोगो को लग रहा होगा के ये जनरेशन गैप सुना था.. ये जनरेशन रेप कहा से आ गया...??? तो जवाब ये है के ये जनरेशन रेप फिल्मो से ही आया है... जिस तरह की फूहड़ता आज कल की फिल्मों में दिखाई जा रही है... ये छिछोरेपन की पराकाष्ठा है... हर फिल्म में एक आइटम सांग होना ज़रूरी हो गया है.... और उस आइटम सांग में भद्दे गीत या फिर डबल मीनिंग लाइन्स का होना ज़रूरी हो गया है... और हाँ... आधे और उससे भी कम कपडे में किसी नायिका के अंगप्रदर्शन के बिना तो गाना हीट हो ही नही सकता.. कमाल की बात तो ये है के इस आइटम सांग को करने के लिए भी शीर्ष की नायिकाओं की कतार लगी रहती है... ताज़ा तरीन नमूना पेश किया है विश्व सुंदरी प्रियंका चोपड़ा ने... फिल्म शूट आउट एट वडाला के आइटम सोंग बबली बदमाश है में... और उसके पहले  करीना कपूर ने... फिल्म दबंग २ के आइटम सांग फेविकोल से में आइटम सांग कर के... किस तरह के गीत लिखे जा रहे हैं.. किस तरह मनोरंजन परोसा जा रहा है ये...  अभी अभी मैंने इस तरह का एक और गीत सुना... शायद अरशद वारसी की किसी नयी फिल्म का गाना था वो.. और बप्पी दा बड़े मज़े लेकर गाना गा रहे थे.. "लॉ लग गए..." इस तरह के डबल मीनिंग गानों की भरमार है बॉलीवुड में... क्या हम सब अब इसी तरह के गीतों से अपना मनोरंजन करना चाहते हैं... विदेश से एक पोर्न स्टार सनी लियॉन को बुलाकर उससे भी आइटम सोंग करवाए जा रहे हैं... ये सब हो क्या रहा है हमारे बॉलीवुड में... मैं आज के ज़माने का युवक हूँ... पर फिर भी मुझे लगता है के ये सब अच्छा नही हो रहा है बॉलीवुड में... ये अश्लील गीत और आइटम सोंग्स अच्छे नही हैं हमारे समाज के लिए... आज मैं किसी भी फिल्म को अपने पूरे परिवार क साथ बैठ के नहीं देख सकता.. ये हालत बना दी है हमारे सेंसर बोर्ड ने फिल्मों की... पहले की फिल्मों की उमराव जान ने आज बबली ने ले ली है.. जैसे जैसे बॉलीवुड की उम्र बढ़ रही है.. इसकी नायिकाओं के कपडे कम हो रहे हैं ... ये हो क्या गया है भाई बॉलीवुड को आजकल... जिसे देखो वही इस तरह की गन्दगी परोस रहा है मनोरंजन के नाम पर... और हमारा सेंसर बोर्ड... वो तो अंधे ध्रितराष्ट्र की तरह बैठ कर द्रौपदी चीरहरण का मज़ा ले रहा है... ये किस तरह के गीतों का इस्तेमाल हो रहा है आजकल फिल्मों में.. और सेंसर.. किसी भी फिल्म में बस एक A का सर्टिफिकेट लगाकर खानापूर्ति कर देता है... क्या सच में आजकल लोगों की पसंद इसी तरह के गीत हैं...?? क्या सच में आज इस दौर में भी औरतों को बस नुमाइश की चीज़ ही समझा जाता है...??? एक तरफ सरकार बातें करती है वीमेन एम्पोवेर्मेंट की... और दूसरी तरफ सरकार का ही एक अंग सेंसर बोर्ड ये अश्लीलता दिखा के आज भी औरतों को नुमाइश की चीज़ साबित करने में लगा हुआ है... इस बारे में सोचने की और कुछ करने की ज़रूरत है.....

आपका

बादशाह खान 
 

Thursday, 11 April 2013

सुख और दुःख


अभी अभी किसी फिल्म में ये डायलोग सुना था... “ पता है लड़के इतनी गालियाँ क्यों बकते हैं...??? क्योंकि वो रोते नहीं हैं...” मुझे कुछ हद तक ये डायलोग सही भी लगा... पर मैं इस डायलोग से पूरी तरह से सहमत नहीं था... लड़के भी रोते हैं.. बहुत रोते हैं.. कुछ ऐसे होते हैं जो रोते भी हैं और गालियाँ भी बकते हैं.. इसकी वजह ये हो सकती है के वो शायद कम रोते हैं... और जो बिलकुल नहीं रोते.. वो बहुत ज्यादा गालियाँ बकते हैं...

बहरहाल... कोई गालियाँ बके... या कोई रोये.. ये परिणाम है अपने अन्दर की भावनाओ को व्यक्त करने का... हर इंसान का अपनी भावना को व्यक्त करने का एक तरीका होता है... कोई चुप रह कर भी अपनी भावनाएं व्यक्त करता है... समझने वाले उसे समझ जाते हैं.. कोई गालियाँ बकता है.. कोई रोता है.. और हर किसी का अपना अपना तरीका होता है.. इन सब का मूल कारण है अपने अन्दर की भावना... इंसान के अन्दर जैसी भावना रहेगी.. उसके परिणाम अलग अलग तरीकों से उसके आचरण में नज़र आएँगे...

गालियाँ बकना या रोना... या चुप रहना.. इन सभी बातो की वजह है दुःख.. या गुस्सा... इंसान इतना दुःख या गुस्सा क्यों करता है...?? बस इसलिए क्योंकि उसके मन का नही हुआ.. या उसके मुताबिक काम नहीं हुआ..?? हमारे ज़्यादातर या कहा जाए के सारे दुखों और गुस्से की वजह दुसरे ही होते हैं.. हममें से शायद ही कोई ऐसा होगा जो खुद पे खुद की गलतियों या गलत कामों की वजह से गुस्सा या दुःख करे... हम सिर्फ और सिर्फ दूसरों की वजह से ही दुखी होते हैं.. या गुस्सा करते हैं... दूसरों के द्वारा किये गए काम... या दूसरों का आचरण हमारी मन:स्थिति का कारण होता है... ऐसा क्यों होता है के उनके किये गए व्यव्हार की वजह से हम दुखी होते हैं...??? इसकी वजह ये है के हम दूसरों से उम्मीदें रखते हैं... उम्मीदें इसलिए रहती हैं क्योंकि आपने किसी के साथ जैसा व्यव्हार किया.. ठीक वैसे ही व्यव्हार की उम्मीद आप सामनेवाले से रखते हैं.. ठीक वैसा नहीं तो कम से कम ऐसे व्यव्हार की उम्मीद रखते हैं के आपको बुरा न लगे... मगर सामने वाले से आपको वैसा कुछ नही मिलता.. और इंसान को दुःख होता है या गुस्सा आता है.. और इसके परिणामस्वरूप वो इंसान अपनी भावना व्यक्त करता है... या तो वो गालियाँ बकता है.. या रोता है... या चुप रहता है..  

इसके ठीक विपरीत.... हमारे सारे हर्ष और ख़ुशी की वजह हम खुद होते हैं.. या हमारे द्वारा किये गए काम होते हैं... हम हर उस कम को कर के खुश होते हैं जो हमने खुद किया है... खुद के किये हुए कामों से हमें ख़ुशी मिलती है... अपनी ख़ुशी की वजह हम खुद हैं.. और अपने दुःख की वजह दुसरे...

तो आखिर हम क्यों दूसरों से उम्मीद करते हैं..?? क्यों उन लोगों के बारे में सोचते हैं जिनसे हमें सिर्फ दुःख मिलता है...?? क्यों उन लोगों के बारे में सोचते हैं जिनको इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ता के हमें उनके किसी काम की वजह से दुःख होगा या ख़ुशी...?? ये सवाल हमें अपने आप से करना चाहिए...

हमें सिर्फ अपने बारे में ही सोचना चाहिए.. ना की दूसरों के बारे में सोच के दुखी और गुस्सा होना चाहिए.. क्योंकि न तो आप दूसरों के बारे में सोचेंगे.. न आप उनसे कोई उम्मीद रखेंगे.. और न आपको दुःख होगा या गुस्सा आएगा.. तो अच्छा यही है के इंसान सिर्फ और सिर्फ खुद की सोचे.. खुद का फायदा देखे.. न की दूसरों के चक्कर में दुखी और क्रोधित हों ....

आपका
बादशाह खान

Thursday, 8 November 2012

राज्योत्सव बनाम राय-पुरोत्सव

समझ नहीं आ रहा है के इस राज्योत्सव को क्या कहूं... मुझे तो ये राय-पुरोत्सव ही ज्यादा लगता है... क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य का बस एक ही मतलब है.. रायपुर.. बाकी जिलों का क्या हाल है ये मेरे बाकी मित्र बहुत अच्छे से जानते ही होंगे जो रायपुर में नहीं रहते.. कहीं और बसते हैं.... पूरा विकास.. पूरी उन्नति सिर्फ और सिर्फ रायपुर की ही हो रही है... ऐसा लगता है मानो क छत्तीसगढ़ राज्य में बस एक ही शहर है... रायपुर ... और वो भी ऐसा.. जहा न सडको का ठिकाना है.. न रौशनी का.. और अब तो ये भी इस हालत में है मानो छत्तीसगढ़ की सौतेली औलाद हो... जैसे की बाकी जिले छत्तीसगढ़ की सौतेली औलादे हैं... धीरे धीरे वही हाल रायपुर का भी हो रहा है... अब तक छत्तीसगढ़ की एक सगी और २६ सौतेली औलादे थी.. अब पूरी २७ सौतेली औलादे हैं... रायपुर भी अब सौतेली औलाद हो गया है... क्योंकि अब एक नयी सगी औलाद आ गई है.. नया रायपुर...
 
नया रायपुर... सुन्दरता का प्रतीक... स्वच्छता और सौंदर्य का पर्यायवाची... भारत का होने वाला सबसे सुन्दर.. आधुनिक.. और व्यवस्थित नगर... इस नए रायपुर को बनाने में जो लागत लग रही है... अगर उसका १० प्रतिशत भी बाकी २६-२७ सौतेली औलादों के हिस्से में खर्च कर दिया जाए... तो वहाँ की मूलभूत सुविधाओ के हाहाकार का अंत किया जा सकता है... मगर हमारी सरकार को इस बात का होश नहीं है के बाकी के जिलों की क्या हालत है.. और फिर भी हमारी सरकार राज्योत्सव मना रही है... जहां करीना कपूर के ६ मिनट के परफॉरमेंस के लिए करोड़ों रुपये स्वाहा हो गए... बड़े बड़े नेता और अभिनेताओं को बुलाकर राज्योत्सव मनाया जा रहा है... कभी भी उन नेताओं या अभिनेताओ को नए रायपुर के अलावा कुछ और नहीं दिखाया जाता... अगर दिखा देंगे तो ढोल का पोल दिख जाएगा... बहरहाल... राज्योत्सव बड़े धूम धाम से मनाया गया... लोगों ने करीना कपूर के ६ मिनट के ठुमकों का खूब मज़ा लिया... माफ़ कीजिये.. लिया के नहीं लिया मुझे नहीं पता... लेकिन करीना ने छत्तीसगढ़ सरकार से लिए रुपयों का खूब मज़ा लिया होगा... आखिर करोड़ों रुपयों की बात है...
 
मुझे ये समझ नहीं आता के सरकार आखिर राज्योत्सव का आयोजन ही क्यों करती है.... और आखिर कब तक राज्योत्सव के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाएंगे... किस बात की ख़ुशी है सरकार को के हर साल राज्योत्सव के नाम पर करोड़ों रूपये फूंक देती है ये सरकार... और किसे और क्यों दिखाना चाहती है के छत्तीसगढ़ का राज्योत्सव इतना भव्य होता है..?? किस बात पर फक्र करती है राज्य सरकार...??? ३ रु. किलो चावल बांटने पर..?? टूटी फूटी सड़कों पर..?? अँधेरे रास्तो पर...??? पानी के लिए लाइन में खड़ी झगडा करती औरतों पर...??? नक्सलवाद पर..??? नक्सलवाद की लड़ाई में शीद हुए जवानों की शहादत पर..??? एक साथ सैकड़ो लोगों की आँखों की रौशनी छिनने पर...???? आखिर किस बात पर फक्र करती है ये सरकार...??? जितना पैसा सरकार एक साल में राज्योत्सव पर खर्च करती है... उससे न जाने कितने ऐसे काम किये जा सकते हैं.. जिससे सबका भला हो सकता है... कितनी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है... आज छत्तीसगढ़ पूरे देश में सबसे ज्यादा किसी बात के नाम से जाना जाता है तो वो है नक्सलवाद... किसी भी दुसरे राज्य के लोगों से छत्तीसगढ़ के बारे में बात कीजिये.. बस वो यही कहेगा के छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद की बहुत समस्या है ना... और आपको आँखे झुका कर कहना पड़ता है है के हाँ.. ऐसा है... मगर इस बात से राज्य सरकार को क्या लेना देना.. सरकार तो करीना के ठुमको के मज़े लेने में व्यस्त है... सोनू निगम के गाने सुनने में मस्त है...
 
मेरा उद्देश्य किसी भी प्रकार से तरक्की का विरोध करना नहीं है.. मैं तरक्की का कतई विरोधक नहीं हूँ... तरक्की होनी चाहिए.... लेकिन वो राज्योत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करने से नहीं होती.. अपितु काम करने से होती है.. विषय में सकारात्मक सोच रखने से होती है... सरकार सक्षम है उन्नति लाने के लिए... तरक्की करने के लिए.. लेकिन वो कर नही रही है.. बस राज्योत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर के करोड़ों रुपये फूंक रही है... इस राज्य में एक तरफ जहाँ लोगों को आधारभूत सुविधाए नही मिल पा रही है... वही सरकार राज्योत्सव का आयोजन कर के करोड़ों रूपये फूंक रही है.. ये कहाँ का न्याय है..??? क्या ये सरकार समाज के सिर्फ एक वर्ग के मनोरंजन का सोच रही है.. जबकि दूसरा वर्ग रोटी, कपडा और मकान के लिए तरस रहा है...???
 
इस बारे में बहुत गहराई से सोचने की.. और सोच कर काम करने की ज़रूरत है....
 
आपका
 
बादशाह खान

Wednesday, 18 April 2012

विज्ञापन का दौर

कल रात टीवी पर एक एड देखा... बड़े कमाल का एड था वो... देखा कि एक लड़का डीओ लगा रहा है.. और परियां आसमान से गिर रही हैं... और अपने परियों वाले ताज को ज़मीन पर फेक कर एक लड़के के पास जा रही हैं... मैंने सोचा ये क्या है भाई... मतलब उस डीओ को लगाने से परियां भी लडको पे फ़िदा हो सकती हैं... एड बनाने वाला शायद यही दिखाना चाहता था... क्या इसका मतलब ये समझा जाए कि लड़की पटानी हो तो डीओ लगाओ...??? फिर दूसरा चैनल ट्यून किया.. उसमे किसी और कंपनी के डीओ का एड देखा... उस एड कि भी मोरल ऑफ़ द स्टोरी यही थी... के डीओ लगाओ.. और लड़की पटाओ... पिछले कुछ दिनों से मैंने जितने भी डीओ के एड देखे... सारे के सारे एड कि मोरल ऑफ़ द स्टोरी यही थी.... ये सारे एड देखने के बाद तो ये लगता है के भारतीय बाजारों में लड़कियों के लिए कोई डीओ ही नही आते हैं... सारे डीओ सिर्फ लड़कों के लिए ही उपलब्ध हैं... और अगर किसी लड़की को लड़का पटाना हो तो...?? क्या उसके लिए कोई डीओ नही है...??  

हमारे देश के फिल्म कलाकार एक विज्ञापन फिल्म में काम करने के ५-६ करोड़ रुपये लेकर ५-६ रूपये का साबुन बेचने चले आते हैं टीवी पर... १५ रु. पेकेट वाले व्हील पावडर को बेचने के लिए ५ करोड़ के सलमान की क्या ज़रुरत है... ४-५ करोड़ की कटरीना कैफ टीवी पर ५ रु. का साबुन बेच रही है... करीना तो एक कदम और भी आगे है... वो तो  सामान बेचते वक़्त प्रोडक्ट की कीमत भी बताती है - "५ रु. वाला बोरो प्लस लगा ले...", अमिताभ बच्चन जैसे अनुभवी कलाकार भी नवरत्न तेल बेचने टीवी पर आते हैं... विज्ञापन कंपनियों को इन सब बड़े और महंगे सितारों की अपेक्षा छोटे और सस्ते फिल्म कलाकारों से विज्ञापन करवा उन्हें काम देना चाहिए... वैसे भी छोटे कलाकारों के पास ज्यादा फिल्मे नहीं होती.. इसी बहाने कम से कम उन्हें काम मिल जाएगा... इस बात में एक अपवाद है अभिषेक बच्चन... अभिषेक बच्चन को पता नहीं कैसे आईडिया जैसे बड़े ब्रांड के साथ जुड़ने का मौका मिल गया..  मुझे नहीं लगता के हम में से एक भी भला मानुष इनमे से कोई भी सामान किसी भी फिल्म कलाकार को देख कर खरीदता होगा.... फिर इन सबका इस विज्ञापन जगत में क्या काम है... बड़ी बड़ी कंपनिया इन फिल्म कलाकारों को इतने पैसे देकर इनसे विज्ञापन करवाती है... पता नहीं  वजह होगी इसकी...

आजकल विज्ञापन में बच्चों की बड़ी अहम् भूमिका होती है... कभी गौर से देखिएगा... हर दुसरे - तीसरे विज्ञापन में बाल कलाकार ही कम करते हुए नज़र आएँगे... यहाँ तक की ३-४  महीने के बच्चे भी टीवी पर विज्ञापन में काम करते देखे जा सकते हैं... बेचारे छोटे छोटे बच्चे भी टीवी पर घरेलु सामान बेचने भेज दिए जाते हैं... इन बेचारे बच्चों को तो इतना भी पता नहीं होता के जिस चीज़ के विज्ञापन में ये लो काम कर रहे हैं वो किस काम आती है...  इसमें सोचने वाली बात ये है के क्या इन बच्चों पर श्रम क़ानून लागू नहीं होता....??? यही अगर कोई गरीब बच्चा किसी होटल में नौकरी कर रहा हो या किसी गेरेज में काम कर रहा हो तो उसके मालिक के ऊपर श्रम क़ानून के उल्लंघन का आरोप लग जाता है.. जेल हो जाती है... पर टीवी पर काम करने वाले बच्चों के मालिक पर कोई श्रम कानून लागू नहीं होता... वे लोग तो बेधड़क बच्चों से काम करवा रहे हैं.... बिना किसी रुकावट के... एक तरफ वो बच्चे हैं... जो अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए काम कर रहे हैं... जो अपना पेट पालने के लिए काम कर रहे हैं... जिन्हें ये काम करने और करवाने से सरकार रोक रही है... और दूसरी तरफ वो बच्चे हैं... जिन्हें पता भी नहीं के वो क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं... जिनके माँ-बाप जबरदस्ती बच्चों से काम करवा रहे हैं... और सरकार इनपर कोई रोक नहीं लगा रही है... मुझे विज्ञापन में काम करने वाले बच्चों से और उनके माँ-बाप से कोई व्यक्तिगत आपत्ति नहीं है... बल्कि उन गरीब बच्चों के प्रति हमदर्दी है... जो बड़ी मुश्किल से काम करके अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं...

इस बारे में सोचने की ज़रुरत है... 

आपका 
बादशाह खान 

Tuesday, 17 January 2012

लोगो का इंटरटेनमेंट

ये रात भी एक आम रात थी.... ठण्ड भी रोज़ की तरह तेज थी...  पुलगांव के पास गोलू की चाय की टपरी पे लोगो का आना जाना लगा हुआ था... जैसे जैसे रात बढती जा रही थी... ठण्ड भी बढती जा रही थी... रोज़ की तरह लोग आ रहे थे अपने दिन भर की थकान मिटाने... बस वो रुकते... चाय पीते... थोड़ी देर बाते करते और चले जाते....  अचानक दुर्ग शहर की ओर आने वाली गाड़ियाँ बंद हो गई... और दुर्ग से राजनंदगांव की ओर जाने वाली गाड़ियाँ बढ़ने लगी... फिर नांदगांव की ओर से एक सायकल वाले से पूछने पर पता चला की पुल पे कोई एक्सीडेंट हो गया है... गोलू की दुकान पर सारा का सारा माजरा ही बदल गया... लोग भाग कर नदी की ओर जाने लगे... वहाँ जाने पर पता चला के तेजी से आ रही एक स्कोर्पियो गाडी शिवनाथ नदी के पुल से टकराती हुई नदी में गिर गई है..... जिज्ञासावश मैं भी वहाँ गया... और देखा... के स्कोर्पियो में एक ही बन्दा था जिसकी डूबने से मौत हो गई है... पुलिस लाश की पहचान नहीं कर पाई, असल में कोई भी उस लाश की पहचान नहीं कर पाया.. और मैं वहाँ से निकल गया... मुझे लगा कि मेरी वहाँ पर कोई ज़रुरत नहीं है... बस बगल के गुरूद्वारे में हाथ जोड़े और मरने वाले कि आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की और वहाँ से वापस गोलू की दुकान पर चला गया... धीरे धीरे गोलू की दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी... और सब उसी एक्सीडेंट के बारे में बातें करने लगे.... लोग अब नदी की तरफ जाने लगे उस एक्सीडेंट को देखने के लिए... मेरे एक दोस्त का फोन आया की नदी के पास एक एक्सीडेंट हो गया है... देखने चलें क्या.... गोलू की चांदी हो रही थी... लगातार चाय पे चाय के आर्डर जो आ रहे थे... गोलू भी लोगो को बड़े मज़े से उस एक्सीडेंट के बारे में बता रहा था... मानो वो कोई एक्सीडेंट नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा का एक्शंन सीन बता रहा हो... थोड़ी देर के बाद पता चला के कोई लड़का था... जो अकेला स्कोर्पियो में आ रहा था और पुल में गाडी सम्हाल नहीं पाया और गाड़ी नदी में गिर गई, थोड़ी ही देर में लड़का मर गया... लोगो की भीड़ लगातार बढती ही जा रही थी... मैं इस बात पे हैरान था... के जब लड़के की पहचान ही नहीं हुई है तो फिर इतने लोग उसे देखने कैसे आने लगे... दरअसल ये लोग उस लड़के को देखने नहीं... बल्कि उसकी मौत का मज़ा लेने आ रहे थे... हर शख्स उसकी मौत का मज़ा लेने ही आ रहा था वहाँ पर... उस लड़के की मौत लोगो के लिए इंटरटेनमेंट बन गयी... मुझे लगता है के ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा था क्योंकि ये रात का वक़्त था... दिन का वक़्त होता तो शायद कोई पलट के भी नहीं देखता उस पुल की तरफ... हम अपने आप को ही देख लें... रोज़ सड़क पर कितने एक्सीडेंट होते हैं... लेकिन कोई देखता तक नहीं की किसका एक्सीडेंट हुआ है..., कहीं चोट ज्यादा तो नहीं लगी है.. या कोई  मर तो नहीं गया है... बस चलती गाडी में ही बगल वाली गाड़ी वाले से पूछ लेते हैं... मर गया क्या...??? मगर यहाँ तो माजरा ही अलग था.... उस लड़के की मौत लोगो के लिए  इंटरटेनमेंट  बन गयी... मतलब हम अब ऐसे हो चुके हैं के हमारे पास वक़्त हो... तो हम किसी की मौत का भी मज़ा ले सकते हैं और अपना मनोरंजन कर सकते हैं.... ये क्या हो गए हैं हम लोग... इंसान थे पर अब पता ही नहीं चलता के हम इंसान हैं भी या नहीं... दया, करूणा, मदद, इंसानियत जैसी बाते अब हमें फिल्मी या किताबी बातें लगने लगी है.... हम फेसबुक पर एक्सीडेंट सम्बन्धी जानकारी को लोगो तक पहुंचा सकते हैं ... पर एक्सीडेंट सपाट पर होते हुए भी वहाँ घायल की मदद नहीं कर सकते ... क्या यही सीखा था हमने बचपन में...?? क्या यही शिक्षा मिली थी हमें अपने बड़ों से....??? ये तो नहीं सीखा था हमने... इस बारे में गंभीरता से सोचने की ज़रुरत है... और सोचने के साथ ये संकल्प लेने की भी ज़रुरत है... के जिसे भी मदद की ज़रुरत हो हम उसकी मदद ज़रूर करेंगे...

बादशाह खान