Friday 10 May 2013

फिल्मो का जनरेशन रेप...


फिल्मो का जनरेशन रेप... बस यही शब्द आता है दिमाग में जब भी किसी नए फ़िल्मी आइटम सांग को देखता हूँ तो... जनरेशन रेप... वैसे भी आजकल रेप बहुत ज्यादा प्रचलन में है.. तो फिल्मो में तो ये जनरेशन रेप होना लाज़मी है... आप लोगो को लग रहा होगा के ये जनरेशन गैप सुना था.. ये जनरेशन रेप कहा से आ गया...??? तो जवाब ये है के ये जनरेशन रेप फिल्मो से ही आया है... जिस तरह की फूहड़ता आज कल की फिल्मों में दिखाई जा रही है... ये छिछोरेपन की पराकाष्ठा है... हर फिल्म में एक आइटम सांग होना ज़रूरी हो गया है.... और उस आइटम सांग में भद्दे गीत या फिर डबल मीनिंग लाइन्स का होना ज़रूरी हो गया है... और हाँ... आधे और उससे भी कम कपडे में किसी नायिका के अंगप्रदर्शन के बिना तो गाना हीट हो ही नही सकता.. कमाल की बात तो ये है के इस आइटम सांग को करने के लिए भी शीर्ष की नायिकाओं की कतार लगी रहती है... ताज़ा तरीन नमूना पेश किया है विश्व सुंदरी प्रियंका चोपड़ा ने... फिल्म शूट आउट एट वडाला के आइटम सोंग बबली बदमाश है में... और उसके पहले  करीना कपूर ने... फिल्म दबंग २ के आइटम सांग फेविकोल से में आइटम सांग कर के... किस तरह के गीत लिखे जा रहे हैं.. किस तरह मनोरंजन परोसा जा रहा है ये...  अभी अभी मैंने इस तरह का एक और गीत सुना... शायद अरशद वारसी की किसी नयी फिल्म का गाना था वो.. और बप्पी दा बड़े मज़े लेकर गाना गा रहे थे.. "लॉ लग गए..." इस तरह के डबल मीनिंग गानों की भरमार है बॉलीवुड में... क्या हम सब अब इसी तरह के गीतों से अपना मनोरंजन करना चाहते हैं... विदेश से एक पोर्न स्टार सनी लियॉन को बुलाकर उससे भी आइटम सोंग करवाए जा रहे हैं... ये सब हो क्या रहा है हमारे बॉलीवुड में... मैं आज के ज़माने का युवक हूँ... पर फिर भी मुझे लगता है के ये सब अच्छा नही हो रहा है बॉलीवुड में... ये अश्लील गीत और आइटम सोंग्स अच्छे नही हैं हमारे समाज के लिए... आज मैं किसी भी फिल्म को अपने पूरे परिवार क साथ बैठ के नहीं देख सकता.. ये हालत बना दी है हमारे सेंसर बोर्ड ने फिल्मों की... पहले की फिल्मों की उमराव जान ने आज बबली ने ले ली है.. जैसे जैसे बॉलीवुड की उम्र बढ़ रही है.. इसकी नायिकाओं के कपडे कम हो रहे हैं ... ये हो क्या गया है भाई बॉलीवुड को आजकल... जिसे देखो वही इस तरह की गन्दगी परोस रहा है मनोरंजन के नाम पर... और हमारा सेंसर बोर्ड... वो तो अंधे ध्रितराष्ट्र की तरह बैठ कर द्रौपदी चीरहरण का मज़ा ले रहा है... ये किस तरह के गीतों का इस्तेमाल हो रहा है आजकल फिल्मों में.. और सेंसर.. किसी भी फिल्म में बस एक A का सर्टिफिकेट लगाकर खानापूर्ति कर देता है... क्या सच में आजकल लोगों की पसंद इसी तरह के गीत हैं...?? क्या सच में आज इस दौर में भी औरतों को बस नुमाइश की चीज़ ही समझा जाता है...??? एक तरफ सरकार बातें करती है वीमेन एम्पोवेर्मेंट की... और दूसरी तरफ सरकार का ही एक अंग सेंसर बोर्ड ये अश्लीलता दिखा के आज भी औरतों को नुमाइश की चीज़ साबित करने में लगा हुआ है... इस बारे में सोचने की और कुछ करने की ज़रूरत है.....

आपका

बादशाह खान 
 

1 comment:

  1. self analysis - vo jayda important hai mere bhai. sirf "kalam" chalane se kuch nahi hota , we need to look our self first and should make ourself as we want to see other.

    ReplyDelete